बीते पखवाड़े से दिल्ली में औसतन हर रोज एक पुलिसकर्मी आम आदमी के हाथों पिट रहा है... क्यों...? 

समाजसेवी पद्मिनी अय्यर कहती हैं कि पुलिसकर्मी बिना वजह रोक-रोककर परेशान करते हैं, अवैध वसूली करते हैं, इसलिए पिटते हैं... लोग कब तक बर्दाश्त करें...। अंतत: कानून का डर निकल जाता है। 

अभी बुधवार को राजधानी में कैबिनेट मंत्री का काफिला निकलना था तो पुलिस वालों ने सड़क खाली कराना शुरू कर दिया...। एक कार वाले से कार हटाने के लिए कहा गया तो उसने पुलिसकर्मी को गिनकर चार थप्पड़ रसीद कर दिए और पूछा, 'सड़क तेरी है या तेरे बाप की... या राजनाथ सिंह के बाप की...!!!' उसने कार वहीं छोड़ दी और चला गया। तब उस पुलिसवाले की हिम्मत नहीं हुई कि उसे पकड़ ले... लेकिन, अब पूरी टीम उसे ढूंढ रही है...।

मुझे याद आ रहा है जब सालभर पहले किसी लफड़े में पुलिस थाने जाना पड़ा था तब वहां का चौकी प्रभारी कह रहा था, 'भाईसाब, इस नौकरी में अब कोई दम नहीं रहा है... जल्द ही ऐसा समय आने वाला है जब हर कोई थाने आएगा और घंटा बजाकर चला जाएगा...।'

स्थानीय पत्रकार ललित सिंह गोदारा कहते हैं कि ऐसा इन पुलिसवालों की खुद की कार्यप्रणाली के कारण हुआ है। पुलिसवाले 'झपटमारों' जैसे हो गए हैं। एक पुलिसकर्मी ने दिल्ली के द्वारका इलाके में एक लड़के की जेब में हाथ डालकर 200 रुपये निकाल लिए। लड़के का कसूर यह था कि वह अपनी बाइक पर 20 लीटर वाली पानी की बोतल लेकर जा रहा था। जमकर बवाल हुआ... इतना कि पुलिसकर्मी की जान पर बन आई और वह खिसक लिया।

दरअसल, होने यह लगा है कि पुलिस वालों को देखते ही लोगों के मन में असुरक्षा का भाव आने लगता है, जबकि होना इसके उलट चाहिए था। परिणामत: वह आसन्न खतरे को देखकर 'पलटवार' में जुट जाता है और करीब-करीब गैरकानूनी प्रतिक्रिया देने में भी 'गुरेज' नहीं करता है। हाल ही में मथुरा रोड पर एक कांस्टेबल द्वारा महिला को ईंट मारने का विवाद भी इसी तरह का था। कल ही, इंडिया गेट के नजदीक एक लड़का खुले में पेशाब कर रहा था। एक पुलिसकर्मी ने उसे रोकते हुए कहा कि भागो यहां से...। लड़का मुड़ा और पेशाब करते-करते ही उक्त पुलिसकर्मी की ओर देखने लगा। पुलिसवाला ठिठका और फिर वहां से चला गया...। लड़का अपने 'काम' में जुटा रहा...। यहां यह जरूर ध्यान रहे कि इंडिया गेट के इलाके में दूर-दूर तक टॉयलेट दिखाई नहीं देते...।

पुलिस का शीर्ष प्रशासन अगर वास्तव में इस प्रकार की घटनाओं को रोकने में रुचि रखता है तो निश्चित रूप से यह समय 'आत्ममंथन' का है। निश्चित रूप से पुलिसकर्मियों की जरूरत से ज्यादा काम और कम आय जैसी कई समस्याएं हो सकती हैं लेकिन कहीं ये समस्याएं उनकी कर्तव्यपूर्ति में आड़े तो नहीं आ रही हैं...? आला अधिकारी इस बारे में सोचें...। पुलिस सुधार के लिए कई आयोग बैठ चुके हैं और उनकी रिपोर्ट ठंडे बस्तों में पड़ी हुई हैं। समय आ गया है कि अब उनपर कार्रवाई हो वरना... जो है सो है...