ये जो ‘बीफ बैन’ का मसला है…, इतना आसान नहीं है। कभी गांव और किसान को समझकर देखो। स्थिति ऐसी है कि अब दो जून नून-रोटी भी पूरी नहीं मिलती। जब खुद का गुज़ारा नहीं तो जानवरों को ‘सानी’ कहां से लाएं। भइया…, ये जो भूख है ना बड़ी ज़ालिम होती है। कोई धर्म जाति से इसका लेना-देना नहीं होता है। घोर स्वार्थी बना देती है। मजबूरन जानवर बेचने पड़ते हैं, कत्लखानो में… क्योंकि जहां तक उन गांव के किसानों की पहुंच होती है, वहां तक सभी के हालात एक जैसे हैं। कई असमर्थ होकर उन्हें यूं ही छोड़ देने पर विवश हैं। कभी जाकर देखिए पूर्वांचल और बुंदेलखंड में। जो पशु ‘धन’ होता था, किसानों के लिए वही ‘अभिशाप’ बन गया है आज। आप कर दीजिए बैन। अच्छी बात है। लेकिन, ‘बैकअप प्लान’ भी बना देना…

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