"अखबार में नौकरी करने वाले खुद को पत्रकार समझते हैं, वे पत्रकार नहीं" अर्थात वे मात्र नौकर होते हैं, पत्रकार नहीं! ये अजीबोगरीब और फ्रस्ट्रेटेड कमेंट रात को एक फेसबुकिये विद्वान ने किया है! मैं तो यह समझ ही नहीं पा रहा कि यह स्वयंभू विद्वान पत्रकार होने के कौन से मापदण्ड जानते और मानते हैं! आखिर इन सज्जन को पत्रकार होने के नए मापदण्ड तय करने का हक किसने दिया! सिर्फ इतना ही नहीं, उन्होंने पत्रकारों के यहां शादी-ब्याह में आने वाले विशिष्ट अतिथियों के आगमन तक को अखबारी दबाव घोषित करते हुए पत्रकारों की सामाजिक हैसियत और संबंधों को भी नकारकर अपना पूरा ‘फ्रस्टेशन’ बाहर निकाला! पता नहीं, यह फेसबुकी विद्वान पत्रकारों से कब से और क्यों खार खाए बैठा है!? तो… भाइयो, अब ऐसे "विद्वान" तय करेंगे कि पत्रकार होने की काबिलियत क्या होगी!?

 

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