ऑनलाइन क्वालिटी कंटेंट कैसे लिखें...? इस विषय पर मुझे आप सबके साथ अपने अनुभव शेयर करने के लिए कहा गया है...।
दरअसल, ऑनलाइन माध्यम के लिए कंटेंट की रचना करना प्रिंट या किसी अन्य माध्यम की तुलना में थोड़ा सा डिफरेंट जरूर है लेकिन मूल तत्व वही हैं।
जब आप लिखना शुरू करें तो खुद से सवाल करें कि हमें क्या लिखना है...? किसके लिए लिखना है...? क्यों लिखना है...? कैसे लिखना है? कब लिखना है? और... कहां लिखना है...?
... तो पहला सवाल यह है कि हम लिखें क्या...?
यह एक विस्तृत विषय है जो आपके वैबसाइट और ब्लॉग की प्रकृति पर निर्भर करता है।
इसे आप दो हिस्सों में बांट सकते हैं। पहली, आपकी वैबसाइट एक न्यूज वैबसाइट हो सकती है...। एक टेक्नोलॉजी कंटेंट केटर करने वाली वैबसाइट हो सकती है... एक फैशन वैबसाइट हो सकती है... या फिर खेल और व्यापार से संबंधित हो सकती है। साहित्य, शिक्षा या स्वास्थ्य जैसे विशिष्ट विषयों से संबधित भी हो सकती है।
दूसरी आपके स्वयं के व्यक्तिगत या व्यावसायिक गतिविधियों को लेकर हो सकती है।
पहली कैटेगरी की वैबसाइट में कंटेंट ज्यादा मात्रा में प्रोडक्शन और अपलोडिंग की जरूरत है जबकि दूसरी में तुलनात्मक रूप से प्रोडक्शन कम ही होता है। पहली में जहां आपको ‘क्वालिटी’ के साथ ‘क्वांटिटी’ का भी ध्यान रखना होता है..., समयसीमा का भी ध्यान रखना होता है तो दूसरी में आपके पास क्वांटिटी और समयसीमा का तो कोई खास बंधन नहीं होता लेकिन क्वालिटी वहां भी एक अनिवार्य कारक है।
... लेकिन सवाल अब भी कायम है कि लिखें क्या...?
आप इसे सिंपल 'फाइव डब्ल्यू वन एच' के फॉर्मूले से समझ सकते हैं...। इस फॉर्मूले को हम आगे क्वेश्चन-आंसर सैशन में डिसकस कर सकते हैं।
... अब अगर आप पहली श्रेणी की वैबसाइट की योजना बना रहे हैं तो आपको विषयों की कोई खास कमी नहीं होती।
विषय से संबंधित एक अच्छा विचार या कोई कहानी आप ले सकते हैं...
मौलिकता अभिन्न अंग है...।
कम शब्दों में विषद विवरण आपकी बेहतरी के लिए ही होगा। लेकिन, यदि आप अपनी व्यावसायिक गतिविधियों को लेकर वैबसाइट रन कर रहे हैं तो मौलिक विचार की शर्त तो यहां भी है लेकिन उसमें आप अपने स्वयं की या खुद के द्वारा दी जा रही सेवाओं के बारे में विस्तार से बताने का प्रयास कर सकते हैं।
अपनी सेवाओं के बारे में चित्रों या वीडियो का पूरा सहारा ले सकते हैं। ‘इंगेज’ करने के लिए ‘प्रजेंटेशन्स’ का सहारा ले सकते हैं। अपने फील्ड से जुड़े अलग-अलग विषयों के लिए अलग - अलग लेख लिखे जा सकते हैं।
ज्यादा ‘वैज्ञानिक’ तरीके से लिखने की जरूरत नहीं है। मायने कि जरूरत से ज्यादा तकनीकी शब्द, आंकड़ेबाजी या मुश्किल शब्द रचना...।
लक्ष्य यह रहे कि पाठक तक बात पहुंच जाए...। वह समझ जाए और अपनी समस्या का हल कर ले...।
अब दूसरा सवाल आता है कि किसके लिए लिखें...?
... तो सीधी सी बात है कि आपका अंतिम लक्ष्य अंतिम पायदान पर बैठा पाठक या दर्शक है।
इसे एक च्रक से समझ सकते हैं। इसमें एक ‘रीडर’ है...। रीडर आपके ‘कंटेंट’ को एक ‘कीवर्ड’ के जरिए ‘सर्च’ करेगा...। कीवर्ड के साथ अतिरिक्त ‘एसईओ’ के नियमों का पालन करेंगे तो रीडर को इसे ढूंढने में और मदद मिलेगी। और… अंतत: फिर से आपकी ‘क्रिएशन’ आपके रीडर के समक्ष होगी। गौर से देखें तो पता चलता है कि रीडर ही प्राथमिक है और ‘सब्जेक्ट’ है। बाकी सब हरकतें उसको कंटेंट ‘सर्व’ करने में सहायक मात्र हैं।
इसलिए… आपको अपने पाठक को समझना बहुत ज्यादा जरूरी है। उसे पहचानिए और उसकी जरूरत क्या है...! पाठक को ‘समझने’ की कोशिश करिए और रचनाएं करिए...
तीसरा सवाल आता है कि हमें क्यों लिखना है...?
इसका जवाब हमें एक दूसरे सवाल में मिलेगा...। हमारा कोई भी पाठक या दर्शक हमें इंटरनेट पर क्यों ढूंढ रहा है...?
हमारा यूजर हमें अपनी किसी समस्या के हल की तलाश में ढूंढ रहा है। तो जो भी आप क्रिएशन कर रहे हो वह ‘प्रॉबलम सॉल्विंग’ हो...। ‘सॉल्यूशन’ वहां होना चाहिए...। तो एसईओ, कीवर्ड जैसी ‘फील्डिंग’ से आप उसे ‘इंगेज’ कर लेंगे।
अगला सवाल आता है... कैसे लिखना है...?
यह मेरे खयाल से सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण सवाल है। थोड़ा तकनीकी भी है... जो आसानी से सीखा भी जा सकता है।
शब्द आम बोलचाल के रखिए... साधारण रखिए...।
शीर्षक को आकर्षक रखिए... ‘कैची’ रखिए...। इसके लिए हमें 80-20 फॉर्मूले को ध्यान में रखना चाहिए। क्वेश्चन-आंसर सैशन में इसे भी डिसकस कर सकते हैं...।
‘टीजर’ की तरह से लिखे जाने वाले शीर्षक कोई ज्यादा अच्छी बात तो नहीं कहे जाएंगे लेकिन जरूरत पड़ने पर इस ‘अमोघ अस्त्र’ का प्रयोग आप कर सकते हैं। कम करिए... लेकिन ‘संतुलन’ के साथ कर सकते हैं।
वीडियो, इमेजेस, ग्राफिक्स का खूब प्रयोग करिए। अगर मल्टीमीडिया कंटेंट है तो ‘टैक्स्ट’ कम रख सकते हैं...। जो है बिंदुवार रहे...। बोल्ड, इटेलिक, अंडरलाइन जैसे वर्ड फीचर्स का इस्तेमाल करें। पढ़ने में या कहें कि स्कैन करने में आसान रहेगा। इससे यह भी होगा कि जरूरी बातें ही कही जाएंगी। फालतू की चीजें जोड़कर उसे ‘फ्लफी’ होने से बचाया जाना चाहिए।
अगर कंटेंट कहीं से ‘लिफ्ट’ करना है तो पहले उसे पढ़िए..., समझिए... और फिर अपने शब्दों में पिरोइए...। कट-कॉपी-पेस्ट इज स्ट्रिक्टली प्रॉहिबिटेड। कोई सर्च इंजन भी इस तरह के कंटेंट को प्रोत्साहित नहीं करता है। तो अपने शब्दों में अपनी बात को कहें...। कहानी की तरह कहें... और प्रामाणिकता के साथ कहें...।
हां... व्याकरण की गलतियां तो होनी ही नहीं चाहिए। दैट इज एनोदर स्ट्रिक्ट नो...।
अब सवाल आता है कि कब लिखें...?
यह बड़ा रोचक सवाल है। जब आप ऑनलाइन हैं तो किसी न किसी सोशल नेटवर्क पर होते ही हैं। सामान्य सी गतिविधि है। ... तो नाक-कान-आंख खुले रखें। अपनी ‘ऑडियेंस’ से जुड़े मुद्दों पर नजर रखें...।
मुद्दे पकड़ें...। उठाएं... और व्याख्या में लग जाइए...। इसमें अपने पाठकों का साथ लेने के लिए आप उन्हें सोशल नेटवर्क पर भी इंगेज रख सकते हैं।
एक कहानी या डिस्कशन ‘डेवलप’ हो जाने के बाद आप उसे अपने शब्दों में गढ़कर एक बेहतरीन ‘स्टोरी’ बना सकते हैं। ऐसे ही आप अपने व्यावसायिक हितों से जुड़ी कहानियां भी ‘डेवलप’ कर सकते हैं।
अब यह आखिरी सवाल कि कहां लिखें...? के साथ मैं अपनी बात खत्म करूंगा...
आप पब्लिशर हैं तो जाहिर है अपने प्लेटफॉर्म का उपयोग तो करेंगे ही...।
साथ ही कई बार विषयांतर के चलते आपको कई ऐसे ‘कॉलेबरेशन’ भी करने चाहिए जहां आप अपनी विषय से अलग बात भी रख सकें... अगले वक्ता आपको इसके लिए इंटरलिंक जैसी कई युक्तियां सुझाएंगे...
अब आप इससे संबंधित कोई सवाल हो तो पूछ सकते हैं...
(वेबफेयर द्वारा नई दिल्ली के कनॉट प्लेस में 10 सितंबर 2017 को आयोजित वेबफेयर मीटअप 1.0 में व्याख्यान)
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