बाप – बेटे..., यशवंत और जयंत सिन्हा के बीच मीडिया में चल रहे प्रहसन के बाद अब यह बहस गर्म हो चली है कि नोटबंदी और जीएसटी से कोई फायदा हुआ भी है या सिर्फ बर्बादी ही देश के हिस्से में आई है...!?

मेरी नजर में... नोटबंदी का जहां तक मामला है, जैसा कि मैंने पहले भी कई पोस्ट और ट्वीट किए हैं, तो उसका 'पहला' उद्देश्य राजनीतिक प्रतिद्वंदियों की नाक में 'नकेल' कसना था। वो 'कस' गई...। इस चक्कर में कुछ (अवैध) पैसे वाले लोग भी जाल में फंसने ही थे, सो वे भी 'फंस' ही गए...। हम और आप जैसे 'गरीब' लोगों पर नोटबंदी का कोई खास 'असर' नहीं पड़ना था..., नहीं पड़ा.., बल्कि हमने इसे जमकर तालियां बजाने का 'मौका' माना और बजाई भीं...। गौर करें तो नोटबंदी से सबसे बड़ा फायदा तो यही हुआ है कि पहले से कहीं ज्यादा पैसा अब प्रचलन में आ गया है और सरकार को कर व करदाता पहले से कहीं ज्यादा मिल गए हैं। हालांकि, एक सच यह भी है कि इस नए पैसे का कोई इस्तेमाल होता दिख नहीं रहा। नुकसान जिनको हुआ है उससे आम लोगों को कोई खास असर नहीं पड़ता दिखता। 

दूसरी ओर, जहां तक जीएसटी का सवाल है तो भारत के इतिहास में यह अब तक का सबसे बड़ा 'कर सुधार' है। हालांकि, भविष्य तो किसी ने नहीं देखा है, लेकिन, जब इस तरह का कोई बड़ा मौद्रिक 'बदलाव' किया जाता है तो 'अस्थायी' रूप से चीजों को 'जमने' में थोड़ा वक्त तो लगता है। सो, यहां भी लगेगा। इसके साथ ही, यह इस बात पर भी निर्भर करेगा कि 'आखिरी कार्यान्वयन' कैसे होगा। 
रही बात बाप – बेटे के बीच चल रहे प्रहसन की... तो ऐसा जान पड़ता है कि शायद अर्थव्यवस्था को लेकर लगातार हो रही आलोचनाओं के चलते एक साथ यशवंत सिन्हा और संघ विचारक गुरुमूर्ति के बयान को एक 'स्ट्रेटजी' के तहत जारी करवाया गया हो ताकि..., लोगों को 'लगे' कि भाई देखो..., "... हमारे यहां तो 'पूरा' लोकतंत्र (दिखावे का ही सही) है... सब स्वतंत्र है अपनी-अपनी बात कहने के लिए... इसीलिए कह भी रहे हैं... और यह भी कि... 'समस्या' है..., समस्या को 'समझ' रहे हैं..., 'उपाय' कर रहे है... धीरज धरो... बस...