आरक्षण आज एक 'दकियानूसी सोच' बन चुका है। अंबेडकर इस सोच के 'पिताजी' हैं। व्यवस्था इसकी 'संवाहक'। मेरी बात लिख लीजिए। आरक्षण इस देश और समाज में कभी 'समानता' नहीं ला सकता। हां, परस्पर स्थिति में परिवर्तन हो सकता है...। जो आज दलित 'लगते' हैं, उनकी जगह एक दिन सवर्ण होंगे...

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