मार्कण्डेय काट्जू के किसी बयान पर लिखने को दिल तो नहीं करता लेकिन जैसे-जैसे उनकी उम्र बढ़ती जा रही है वैसे-वैसे उनकी 'उंगली' करने की आदत बढ़ती जा रही है। अब कल कह बैठे कि देश में ऐसे कई नेता हैं जिनको गोली मारी जा सकती है...।

काट्जू की बात बिल्कुल 'सही' है कि देश के ज़्यादातर नेता गोली मार दिए जाने के लायक हैं लेकिन अब सवाल यह उठ खड़ा हुआ है कि जजों के बारे में उनका क्या खयाल है...!

आज रिटायरमेंट के बाद काट्जू जी के मन में कितने 'अच्छे-अच्छे' खयाल आ रहे हैं... जब सीट पर बैठे थे तब क्या उनकी अक्ल घास चर रही थी...? याद है उन्हें अपना कोई 'काम' जो उन्होंने इस 'घटिया' न्याय व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए किया हो...!

कचहरी में जितनी रजिस्ट्री रोजाना होती हैं, उनपर साइन करने के लिए मजिस्ट्रेट 1000 रुपये (अब शायद 2000 रुपये) लेता है क्योंकि उनकी विक्रय धनराशि 'वास्तविक राशि' से कहीं कम होती है... कभी किसी जज ने कहा कि नहीं करूंगा साइन, असली धनराशि लिखकर लाओ... मेरे सामने गिनो नोट...। यह बड़े अचंभे की बात है कि काट्जू साब को अपने कार्यकाल के दौरान रोजाना होने वाला यह 'कांड' पता नहीं चला...!

अदालत में किसी एक तारीख पर जाओ..., वहां जज की नाक के नीचे उसका अर्दली 100-100 रुपये 'आवाज' लगाने के लेता है... काट्जू जी ने कभी सुनी वो 'आवाज'...?

ऐसे तमाम चुटकुलों से दो-चार हो रहे, अपने एक मुकदमे की पैरवी में लगे ललित सिंह गोदारा बताते हैं कि एक लड़के का ड्राइविंग लाइसेंस कोर्ट के कर्मचारी ने सिर्फ 100 रुपये लेकर लौटा दिया, जज के ठीक सामने। उसका हेलमेट न लगाकर गाड़ी चलाने के जुर्म में कोर्ट का चलान हुआ था। चालान नहीं भरने पर एक साल बाद कोर्ट का नोटिस आया था। सिर्फ 100 रुपये और 10 मिनट में मामला निपट गया। उनकी इस बात से हाल ही में हुआ सलमान खान प्रकरण दोबारा से आंखों के सामने से गुजर जाता है।  

एक बड़ा सवाल यह है कि काट्जू जी के कहने पर कुछ नेता, कुछ जज, कुछ वकील, कुछ डॉक्टर और कुछ पत्रकार अगर वाकई गोली मार देने लायक हैं तो ये गोलियां चलाएगा कौन...!? जिस न्यायिक व्यवस्था का 'पोषण' उन्होंने जीवनभर किया है अब अचानक उस व्यवस्था से उनका मोह भंग क्यों हो गया...!

काट्जू जी 'बुढ़ापा' है... चैन से सो जाइए... अब आपके 'बकलोली' करने से कुछ नहीं होगा..। घर जाने का 'टाइम' था हमारा, खामखां गुस्से में इतने 'शब्द' जाया करा दिए...।